रविवार, 25 जून 2017

महाभारत

इस महान ग्रन्थ में ऐसी-ऐसी गप्पे हांकी गई है कि कोई भी समझदार व्यक्ति इन्हें सत्य नही मान सकता। उदाहरण के लिए देखिये:-----
1. घृताची नामक अप्सरा को नग्नावस्था में देखकर भारद्वाज ऋषि का वीर्यपात हो गया,जिसे उन्होंने दोने में रख दिया,उससे द्रोणाचार्य पैदा हुवे
(महाभारत,आदिपर्व,अ०129)
2. ऋषि विभाण्डक एक बार नदी में नहा रहे थे,तभी उर्वशी को देखकर उनका वीर्य स्खलित हो गया।नदी के उस वीर्य मिश्रित पानी को एक मृगी पी गई।उसने एक मानव शिशु को जन्म दिया,यही श्रृंग ऋषि कहलाये।
(महा० वनपर्व,अ० 110)
3. राजा उपरिचर का एक बार वीयपात हो गया।उसने उसे दोने में डालकर एक बाज के द्वारा रानी गिरिका के पास भेजा।रास्ते में किसी दूसरे बाज ने उस पर झपट्टा मारा,जिससे वह वीर्य यमुना नदी में गिर गया और एक मछली ने निगल लिया। इससे उस मछली ने एक लड़की को जन्म दिया।लड़की का नाम सत्यवती रखा गया जो महाऋषि व्यास की माँ थी। (महा०आदिपर्व,अ०166,15)
4. महाऋषि व्यास हवन कर रहे थे और जल रही आग में से धृष्टधुम्न और द्रोपदी पैदा हुए। (महा०आदिपर्व,166,39-44)
5. महाराज शशि बिंदु की एक लाख रानिया थी।हर रानी के पेट से एक-एक हजार पुत्र जन्मे।कुल मिलाकर राजा के 10 करोड़ पुत्र हुवे।तब राजा ने एक यज्ञ किया,और हर पुत्र को एक-एक ब्राह्मण को दान कर दिया,हर पुत्र के साथ सौ रथ और सौ हाथी दिए।( कुल मिलाकर 10 करोड़ पुत्र,10 करोड़ ब्राह्मण,10 अरब हाथी,10 अरब रथ),इसके अलावा हर पुत्र के साथ 100-100 युवतियां भी दान दी।। (महा०द्रोणपर्व,अ०65 तथा शांतिपर्व 108)
6. एक राजा हर रोज प्रातः एक लाख साठ हजार गौएँ, दस हजार घोड़े और एक लाख स्वर्णमुद्राएँ दान करता था,यह काम वह लगातार 100 वर्षो तक करता रहा।
7. राजा रंतिदेव की पाकशाला में प्रतिदिन 2000 गायें कटती थी।मांस के के साथ -साथ अन्न का दान करते-करते रंतिदेव की कीर्ति अदुतीय हो गयी।
(महाभारत आ०208,वनपर्व,8-9)
8. संक्रति के पुत्र राजा रंतिदेव के घर पर जिस रात में अतिथियों ने निवास किया,उस रात इक्कीस हजार गायों का वध किया गया।। (द्रोण पर्व,अ०67,श्लोक 16)
9. राजा क्रांति देव ने गोमेध यज्ञ में इतनी गायोँ को मारा कि रक्त,मांस,मज्जा से चर्मण्यवती नदी बह निकली।। (द्रोण पर्व अ०67,श्लोक,5)
यह है हमारी प्राचीन सभ्यता जिस पर हमें गर्व है।
महाभारत में वर्णित कथाओं को सत्य मानने वालो को यह भी समझना चाहिए की यह कोई ऐतिहासिक दस्तावेज नही,बल्कि,एक कवि की कल्पना है। महाभारत लिखने वाले ने इसे स्वयं एक काव्य कहा है। देखे:-----
1. वेदव्यास बोले ,"मैंने यह काव्य रचा है।"
(महा०आदिपर्व,श्लोक 61)
2. ब्रह्मा ने कहा, "क्योंकि तूने स्वयं इसे काव्य कहा है,अतः यह काव्य की कहा जाएगा।"
(महा०आदिपर्व, अ०1,श्लोक72)
जब स्वयं महाभारतकार इसे काव्य कहता है,तो फिर हम क्यों इसे ऐतिहासिक ग्रन्थ घोषित करते है?सत्ता के भूखे कुछ मानवों ने अपने स्वर्थो को किसी भी हद तक जाकर प्राप्त करने की लालसा में,एक साधारण कथा को आधार बनाकर लेखक ने अपनी कल्पनाशीलता का भरपूर प्रयोग करते हुए हारने वाले पक्ष की निंदा और विजेता पक्ष की खुद स्तुति की है।
विजेता की स्तुति करते-करते उसे ईश्वर का दर्जा दे दिया। जुए में अपनी पत्नी को हार जाने वाले युधिष्टर धर्मराज हो गए,और भिखारी तक को अपना सब कुछ दान कर देने वाला कर्ण निंदनीय हो गए।
इसी कर्ण को धोखे से मरवा देने वाले कृष्ण भगवान् बना दिए गए,जिन्होंने खांडव बन को उसमे रहने वालों लोगो समेत जलवा दिया। कुरुखेत्र के युद्ध में निष्पक्ष होने का ढोंग करके अपने बहनोई अर्जुन का साथ दिया,और उन्हें उकसाकर अर्जुन के ही भाइयों ,गुरुओं,रिश्तेदारों का खून करवा दिया।
लेखक को सदैव निष्पक्ष होना चाहिए ,परन्तु इस ग्रन्थ के रचयिता में निष्पक्षता का अभाव रहा है,शायद इसमें उसकी मज़बूरी रही होगी ,क्योंकि विजेता पांडवो के राज में ही आखिर उनको अपना ग्रन्थ लिखना पड़ा होगा,तो चापलूसी आवश्यक थी।
पूरा महाभारत ही पक्षपात पर आधारित है।अगर तथाकथित भगवान् श्रीकृष्ण निष्पक्ष होते तो गीता में मरने मारने की अर्जुन को प्रेरणा देने के बजाय उन्हें थोड़े में संतोष की सीख देते।कौरवों की तरफ से लड़ने वाले उनके सेनापति भीष्म भी अगर निष्पक्ष होते तो भी इतना खून खराबा न होता।
महाभारत में वर्णित कथाओं में ब्राह्मणों का खूब महामंडन किया गया है। इसमें वर्णित कथाओं का एकमात्र उद्देश्य लोगो को उल्लू बनाकर अपना हलवा मांडा सीधा करना था, जो ब्राह्मणों ने महाभारत नामक ग्रंथ को भगवान् गणेश द्वारा लिखित ग्रन्थ घोषित करके किया।
आज भी महाभारत के नाम पर लोगो को लूटने वालों की कोई कमी नही है।भव्य कृष्ण मंदिर बनते है, रासलीलाओं का आयोजन होता है,और महाभारत की सत्यता का ढिंढोरा पिटा जाता है।,जबकि इसके पढ़ने वाले 1% भी नही होते और इसे बिना पढ़े ही सोलह आने सत्य मान लेते है।।
इस ग्रन्थ को व्यास ने काव्य के रूप में रचा है। एक राजपरिवार के अंदरूनी झगडे को अपनी कल्पनाशीलता के द्वारा ग्रन्थ का रूप दिया। अब यह हमारा बौद्धिक दिवालियापन है, जो हम एक कवि की कल्पना को सच माने।

3 टिप्‍पणियां:

  1. Tu ku gyaan baant raha hai...hazaro saal pahle kya tha kya nahi...jara anya dharmik pustako per bhi prakash dalne ka mahan kast karein ..murkh gyani atma

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    1. ये मान सकते हैं कि मिलावट की गई है परंतु महाभारत एक सत्य घटना हैं इसके प्रमाण मौजूद हैं

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    2. कितनी % सही है जो लिखा है और क्या क्या मिलावट की गई है इस पर प्रकाश डाले

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