बुधवार, 11 जनवरी 2017

वैदिक काल में पिता-पुत्री संबंध उचित माने जाते थे

वैदिक काल में पिता-पुत्री संबंध उचित माने जाते थे

वैदिक समाज में मादक द्रव्यों व नशों का प्रयोग,व्यसन, जुआ, जादू-टोना, अनैतिकताएं, अन्धविश्वास और मूर्खतापूर्ण रूढ़ियाँ व्यापक थीं. बौद्धकाल पूर्व के आर्यों में लैंगिक (sexual ) अथवा विवाह-संबंधों के प्रति कोई प्रतिबन्ध नहीं  था. वैदिक समाज में पिता-पुत्री और बाबा-पोती में मैथुन समंध उचित माने जाते थे. वसिष्ठ ने अपनी पुत्री शतरूपा से विवाह रचाया, मनु ने अपनी पुत्री इला से विवाह किया, जहानु ने अपनी बेटी जहान्वी से शादी की, सूर्य ने अपनी बेटी उषा से ब्याह किया । धहप्रचेतनी और  उस के पुत्र सोम दोनों ने सोम की बेटी मारिषा से संभोग किया. दक्ष ने अपनी बेटी अपने ही पिता ब्रह्मा को विवाह में दी और इन वैवाहिक-संबंधों से नारद का जन्म हुआ. दोहित्र ने अपनी २७ पुत्रियों को अपने ही पिता सोम को संतान-उत्पत्ति के लिए सौंपा.
आर्य खुले आम सब के सामने मैथुन करते थे. ऋषि कुछ धार्मिक रीतियाँ करते थे जिन्हें वामदेव-विरत कहा जाता था. ये रीतियाँ यज्ञ-भूमि पर ही की जाती थी. यदि कोई स्त्री पुरोहित के सामने सम्भोग करने की इच्छा प्रकट करती थी तो वह उसके साथ वहीँ सब के सामने मैथुन करता था. उदाहरांत: पराशर ने सत्यवती और धिर्घत्मा के साथ (यज्ञ-स्थल ही पर) सम्भोग किया." आर्यों में योनि नामक एक प्रथा प्रचलित थी.योनि शब्द का जैसा अर्थ अब लगाया जाता है वैसा शुरू में नहीं था शब्द योनि का मूलत: अर्थ है -  घर. अयोनी का अर्थ है ऐसा गर्भ जो घर के बाहर ठहराया गया हो. अयोनी-प्रथा में कोई बुराई नहीं मानी जाती थी. सीता और द्रोपदी दोनों का जन्म अयोनि (यानी घर से बाहर) हुआ था."
आर्यों में औरत को भाड़े (किराये) पर दिया जाता था. माधवी की कहानी इस का एक स्पष्ट प्रमाण है. राजा ययाति ने अपनी बेटी माधवी को अपने गुरु गालव को भेंट में दे दिया. गालव ने माधवी को तीन राजाओं को भाड़े पर दिया. इस के पश्चात गालव ने माधवी का विवाह विश्वामित्र से कर दिया वह विश्वामित्र के पास उस समय तक रही जब तक उस ने एक पुत्र को जन्म नहीं दिया, यह सब कुछ होने के बाद गालव ने माधवी को वापिस लेकर उसे उसके पिता को लौटा किया."
शब्द कन्या का अर्थ भी वह अर्थ नहीं जो अब लगाया जाता है. वैदिक काल में कन्या का अर्थ था वह लड़की जो किसी भी पुरुष के साथ सम्भोग करने में स्वतन्त्र है. कुंती और मत्स्यगंधा के उदाहरण से यह स्पष्ट है. कुंती का पांडू के साथ विवाह होने से पूर्व उसके कई बच्चे पैदा हुए. मत्स्यगंधा ने भीष्म के पिता शांतनु के साथ विवाह करने से पूर्व मुनि पराशर से सम्भोग किया. आर्य बढ़िया संतान पैदा करवाने के लिए अपनी औरतों को देव नामक एक वर्ग को सौंपते थे. सप्तपदी की प्रथा का भी इसी रीति से आरम्भ हुआ. विवाह मंडप में जो वधू पवित्र अग्नि के इर्दगिर्द सात चक्कर काट देती थी, उसे देव से मुक्त करार दे दिया जाता था और ऐसा होने पर वर उसे ले जा सकता था.
आर्य पशुओं से भी सम्भोग करते थे. दाम ने हिरनी से और सूर्य ने घोड़ी से सम्भोग किया. अश्वमेध यज्ञ में औरत का मृत घोड़े से सम्भोग कराया जाता था."(देखें, महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित, डॉ.बाबासाहब आंबेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज़ खंड ३ के पृष्ठ १५३-१५७) स्वामी दयानंद ने, यजुर्वेद भाष्य (पृष्ठ ७८८) में लिखा है: अश्विम्याँ छागेन सरस्वत्यै मेशेगेन्द्रय ऋषमें (यजुर्वेद २१/६०) अर्थात: प्राण और अपान के लिए दु:ख विनाश करने वाले छेरी आदि पशु से, वाणी के लिए मेढ़ा से, परम ऐश्वर्य के लिए बैल से-भोग करें. वेदों में दर्ज कुछ और नमूने अश्लील नमूने :-वेदों में दर्ज कुछ और नमूने अश्लील नमूने :-इन्द्राणी कहती है :- न सेशे .................उत्तर: (ऋगवेद १०.८६.१६)  अर्थ :- हे इन्द्र, वह मनुष्य सम्भोग करने में समर्थ नहीं हो सकता, जिसका पुरुषांग (लिंग) दोनों जंघाओं के बीच लम्बायमान है वही समर्थ हो सकता है, जिस के बैठने पर रोमयुक्त पुरुषांग बल का प्रकाश करता है अर्थात इन्द्र सब से श्रेष्ठ है. इस पर इन्द्र कहता है. न सेशे...........उत्तर. (ऋग्वेद १०-८६-१७)अर्थ :- वह मनुष्य सम्भोग करने में समर्थ नहीं हो सकता, जिसके बैठने पर रोम-युक्त पुरुषांग बल का प्रकाश करता है. वही समर्थ हो सकता है, जिसका पुरुषांग दोनों जंघाओं के बीच लंबायमान है। न मत्स्त्री.............................उत्तर:(ऋग्वेद १०-८६-६)अर्थ :- मुझ से बढ़कर कोई स्त्री सौभाग्यवती नहीं है. मुझ से बढ़कर कोई भी स्त्री पुरुष के पास शरीर को प्रफुल्लित नहीं कर सकती और न मेरे समान कोई दूसरी स्त्री सम्भोग के दौरान दोनों जाँघों को उठा सकती है. ताम.........................शेमम. (ऋग्वेद १०-८५-३७) अर्थ :- हे पूषा देवता, जिस नारी के गर्भ में पुरुष बीज बोता है, उसे तुम कल्याणी बनाकर भेजो, काम के वश में होकर वह अपनी दोनों जंघाओं को फैलाएगी और हम कामवश उसमें अपने लिंग से प्रहार करेंगे.
(वैधानिक चेतावनी :- आप सभी से प्रार्थना है की इस ब्लॉग में लिखे की घर में आजमाइश न करें तो अच्छा है वर्ना कुछ भी हो सकता है.इसे वेदों तक ही सिमित रहने दें फिर भी अगर कोई करता है उसका होस्लेवाला जिम्मेदार नहीं होगा. आजकल छोटी-छोटी बातों की वजह से नौबत तलाक तक पहुंच जाती है ये तो फिर बहुत ही बड़ी बात है.बाकी वेदों में दर्ज इस अश्लीलता के बारे में अवश्य लिखें लेकिन वेदों को पढ़ने के बाद। बिना पढ़े यह न कह दें कि ये सारी बातें मनगढ़ंत हैं।)

9 टिप्‍पणियां:

  1. महत्वपूर्ण जानकारी मिली इस लेख में

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  2. सब हिन्दू धर्म को बदनाम करने की साजिश के तहत ये लेख लिखा गया है|इसमे लेशमात्र भी सत्यता नही है

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  3. यह लेख दुर्भावना पूर्ण लिखा गया है सत्य नही हैं।
    वैदिक साहित्य के विकृत और मिलावटी प्रसंगो को पढ़कर तथा लम्बे समय की गुलामी और लोगों के अत्याचार के कारण और स्वार्थी लोंगो के दुष्प्रचार के कारणों का परिणाम है यह लेख।
    स्वस्थ मष्तिष्क से और स्वस्थ साहित्य के अध्ययन से पता चलेगा कि वेद ज्ञान का स्रोत है जिसमें सब सत्य ज्ञान है जिससे विश्व का कल्याण हो सकता है।
    वेदों में इतिहास नही है। वैदिक काल का समाज एक आदर्श जीवन जीता था पुत्री के साथ शारीरिक संवन्ध बनाने की बात सर्वथा गलत है बल्कि परायी स्त्री को माता बहिन और पुत्री के समाज पवित्र और सम्मान जनक व्यवहार किया जाता था। केवल पत्नि और वह भी एक उसी के साथ शारीरिक संबन्ध बनाये जाते थे।

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    1. ऐसा कोई धर्मिक ग्रन्थ है आपकी नजर में जो मिलावटी नही है
      रामायण
      भागवत गीता
      महा भारत।
      मनुस्मृति
      चारो वेद
      उपनिषद
      पुराण
      इनमेसे कुछ बतलाते है तो कहते है मिलावट हुई है क्या बात है,😁😁😁😁😁😁😁

      तो छोड़ो फिर

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  4. बहुत बढ़िया जानकारी मिली है

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  5. Maan lo ye sab theek bhi ho, par aaj ke lens se agar aap ateet ko dekhoge to galat hi sochoge.

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  6. Nastikon ne kaun se badhiya kaam kar liye jo aastik nahin kar paaye?

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  7. हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए ये किया गया है

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