बुधवार, 5 जुलाई 2017

हरामखोर आर्यों की कथा !


नैमिषारण्य, नैमिष और नीमसार यह एक ही नाम है उस जगह के जहां कभी आर्यों की सबसे बड़ी मिशनरी रही, उत्तर भारत में ऋषियों यानी धर्म-प्ररचारकों का सबसे बड़ा गढ़। आप को बताऊं यह बिल्कुल वैसे ही जैसे अठारवीं सदी में योरोप और अमेरिका से आई ईसाई मिशनरियों ने भारत के जंगलों में रहने वाले लोगों के मध्य अपना धर्म-प्रचार किया और उन्हे ईसाई दीन की शिक्षा-दीक्षा दी, वैसे ही यह आर्य चार-पाँच हज़ार पूर्व आकर इन नदियों के किनारे वनों में अपने धर्म-स्थलों की स्थापना कर जन-मानस पर अपना प्रभाव छोड़ने लगे…धर्म एक व्यवस्था…एक कानून है और यह आसानी से जन-मानस को प्रभावित करता है और उनके मष्तिष्क पर काबू भी ! नतीजतन धर्म के सहारें फ़िर यह धर्माचार्य जनता पर अपना अप्रत्यक्ष शासन चलाना शुरू करते है…उदाहरण बहित है…रोम का पोप…भारत में बौद्ध मठ ….इत्यादि…!
दरअसल ये धर्माचार्य आम मनुष्य के अतिरिक्त सर्वप्रथम राजा पर अपना प्रभाव छोड़ते है, राजा उनका अनुयायी हुआ नही कि जनता अपने आप उनसे अभिशक्त हो जाती है, यदि हम इतिहास में झांके को देखेगे..चन्द्रगुप्त मौर्य पर बौद्ध धर्माचार्यों ने अपना प्रभाव छोड़ना शुरू किया वह आशक्त भी हुआ बौद्ध धर्म से किन्तु चाणक्य के डर से वह बौद्ध नही बन पाया, कनिष्क कुषाण था किन्तु आर्यावर्त के स्नातन धर्माचार्यों के प्रभाव से वह शिव यानी महादेव का उपासक हो गया औय ही हाल तुर्किस्तान से आये शकों का था जो महादेव के अनुवायी बन छोटे छोटे छत्रपों के रूप में उत्तर भारत पर राज्य करते रहे । धर्म का वाहक ऋषि जो गुरू होता था राजा और प्रजा का, राम को ही ले तो दशरथ से ज्यादा हक़ वशिष्ठ और विश्वामित्र का था राम पर….जैसा गुरू कहे राजा वही करता था यानी अप्रत्यक्ष रूप से धर्म का ही शासन…चलो ये भी ठीक धर्म कोई भी हो सही राह दिखाता है….लेकिन यदि धर्म के वाहक ही अधर्म के कैंन्सर से ग्रस्त हो जायें तो उस राज्य और वहां के रहने वालों का ईश्वर मालिक…..।
आप सब को इतिहास की इन खिड़कियों में झाकने के लिए विवश करने की वजह थी, मेरा आर्यावर्त में नैमिष के उस महान स्थल का अवलोकन व विश्लेषण जिसने मुझे स्तब्ध कर दिया ! धर्म के विद्रूप दृष्यों और क्रियाकलापों को देखकर..अब न तो वहां कॊई धर्म का सदगुणी वाहक है और न ही जन-कल्याण की भावना, और न ही कोई ऐसा धर्माचार्य जो मौजूदा लोकतान्त्रिक इन्द्र को यानी लाल-बत्ती वालों को प्रभावित कर अच्छे या बुरे (अपने विचारों के अनुरूप) कार्य करवा सकें…यदि कुछ बचा है तो अतीत का वह रमणीक स्थल जहां कभी कल-कल बहती आदिगंगा गोमती का वह सिकुड़ा हुआ रूप जो एक सूखे नाले में परिवर्तित हो चुका है, घने वनों की जगह मात्र छोटे छोटे स्थल बचे हुए है जहां कुछ वन जैसा प्रतीत हो सकता है ! और ऋषि आश्रमों में जहां हज़ारों गायें विचरण करती थी, हज़ारों बच्चे संस्कृत में वेदों की ऋचाओं का उदघोष करते थे और आचार्य धर्म पर व्याख्यान देते थे…इन सबकी जगह अब वह हमारी निश्छल और गरीब जनता को ठगने और उनका आर्थिक व शारीरिक शोषण करने वाले मनुष्य बचे हुए…गन्दे, भद्दे, मूर्ख, चतुर, कपटी, लोभी, लालची, मनुष्य जो सन्त के चोले में हमारे निश्छल, भोले, सादे, व धर्म भक्ति में डूबे लोगों को वह कपटी, साधनहीन सन्त अपनी जीविका और अय्याशी का साधन बनाने की फ़िराक में तत्पर दिखती है, उनकी आंखों में लोभ की चमक साफ़ दिखती है..! बस वे इसी फ़िराक में रहते है कि कब हमारे गांवों से आये हुए तीर्थ-यात्रियों में से कोई व्यक्ति उनके चंगुल में फ़ंसे…!
यहां एक बात स्पष्ट करना चाहूंगा कि अतीत में धर्म के सहारे सीधे या अप्रत्यक्ष रूप पर जनता पर आधिपत्य करने की कोशिश में धर्म कानून की किताब की तरह कार्य करता था, जिसका पालन शासक और शासित दोनो किया करते थे…लोकतन्त्र और शिक्षा के प्रसार ने अब उस धार्मिक शासन ्यव्स्था को ध्वस्त तो कर दिया किन्तु जन-मानस के मस्तिष्क में वह धर्म और उसका डर अभी भी परंपरा के रूप में पीढी दर पीढी चला आ रहा है, हां अब न तो योग्य ऋषि है और न ही अन्वेषणकर्ता मुनि, सन्त इत्यादि बचे है वो लकीर के फ़कीर भी नही है, बस आडम्बर से लबा-लब भरे विषयुक्त ह्रदय वाले मनुष्य धर्म के भेष में शैतान है जिनकी उपमा किसी जानवर से भी नही दी जा सकती..क्योंकि वह जानवर क्रूरता और दुर्दान्तता के शब्दों सेब मानव द्वारा परिभाषित किया जाता है उसके पीछे उसके जीवित रहने की विभीषिका होती है न कि इन कथित सन्तों की तरह कुटिल कूतिनीति, लालच …..
धर्म के नाम पर बड़े बड़े गढ़, आश्रम और तीर्थ, मन्दिर इत्यादि का निर्माण सिर्फ़ व्यक्तिगत महत्वांकाक्षाओं का नतीजा होते है, जन-कल्याण और शिक्षा की भावना गौढ होती है…नतीजतन ये धर्म स्थल व्यक्ति के अंह और उसके द्वारा बनाये गये नियमों को जनता पर थोपने का अड्डा बनते है..

9 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्कार जी।
    है ऊँच नीच का रोग जहाँ उस देश की गाथा गाता हूँ। यह कविता क्या आपने लिखी है? आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा रहेगी। टीकम बोहरा RAS, जयपुर। M. 09414077899

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  2. Dusro ke bare me burai krne se koi khud mahan naii ho jata samjhi aap

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    1. सही कहा दूसरे के जबरदस्ती बनाए गए धर्म में आपका जो स्थान है वह पहले से निर्धारित कर थोपा जाए तो मन को आघात तो होगा। अब उसे जानने के बाद तोड़ने पर आप जैसे प्रवचनी आ जाएंगें और अपने को महान दिखाने का कार्य करेंगे

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  3. Dusro ke bare me burai krne se koi khud mahan naii ho jata samjhi aap

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  4. आपने जो भी लिखा है एक दम सही लिखा है हमारे देश की हालात ऐसे ही है इन आर्यों ने पूरा देश को बर्बाद कर दिया

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  5. जय भीम साथियों जय भीम इस ब्लॉग को पढ़कर काफी सुकून मिला इसमें काफी जानकारियां दी गई है जो हमारे लिए जागरुकता के लिए उपयोगी है अधिक से अधिक लोग जुड़े और मिशन भीम को आगे बढ़ाने में अपना योगदान करें जय भीम जय भारत जय संविधान

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  6. इस हकीकत को बहुजनो को समझाने की आवश्यकता है जिसदिन बहुजन पाखण्ड समझ जायेगा उस दिन क्रान्ति आ जायेगी

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  7. धर्म तो धर्म है सभी इन्सान एक समान होते है फिर धर्म मे भेदभाव कैसे बना किया किसी ईश्वर ने आके कहा फिर हिन्दू धर्म मे ही चूहा चूत कियू यह ब्राह्मणवाद की देन है वो इसलिए कहा गांवो मे ब्राह्मण लोग कहते है कि एससी-एसटी मंदिर मे आने पर आचूत होता है वो किया वो इन्सान नही होते है ओर धर्मो मे भेदभाव कियू नही है डॉ अंबेडकर ने संविधान के माध्यम से एससी-एसटी वा ओबीसी को जिनेका हक दिया है ईश्वर ने कियू नही दिया ईश्वर तो शक्तिशाली है जय भीम महान जय बुद्ध धम्म

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