हमारा वेद कहता है
"भष्मान्तम् शरीरं " (यजुर्वेद 40वां अध्याय)
मृत्योपरांत मृतक के शरीर को जलाने के बाद उसके कोई कर्म शेष नहीं रह जाते।
आइए हम श्राद्ध तर्पण और पिंडदान के बारे में संक्षेप में जानकारी प्राप्त करें
1. श्राद्ध-जब हम अपने जीवित पूर्वजों को श्रद्धा पूर्वक उनके लिए ऋतु अनुकूल भोजन, वस्त्र, पेय, मनोरंजन आदि देते हैं तब वह श्राद्ध कहलाता है।
2.तर्पण- जब हमारे द्वारा श्रद्धा पूर्वक दिए गए भोजनादि से हमारे बड़े बुजुर्ग तृप्त हो जाते हैं तब वही तर्पण कहलाता है।
3.पिंडदान- इस शरीर को पिंड भी कहते हैं और जब यह शरीर मृत्यु को प्राप्त होता है तब उसे जलाने के लिए चिता पर अच्छी प्रकार से रखकर जलाना ही पिंडदान कहलाता है।
ये बाते पूर्णतया वैदिक हैं। जहाँ तक पुराणों की बात हैं वो प्रमाणिक नहीं मने जाते क्योकिं 18 पुराणों के विषय एवम् कथानक अपने आप में नहीं मिलते हर पुराण एक दूसरे की काट करता है।
मृत्योपरांत श्राद्ध तर्पण आदि से हमारे मृतक पूर्वजों को कुछ लाभ नहीं मिलता बल्कि हमारे पाखण्डी पण्डे पूजारियों को लाभ जरूर पहुँचता है। ये पण्डे पुजारी अपने आपको हमारा पुरोहित कहते हैं। जरा विचार कीजिए पुरोहित शब्द पर पुरः+हित अर्थात् जो हमारा सब ओर से हित चाहे वो पुरोहित है। परन्तु आप देखिए जब हमारे यहाँ किसी की मृत्यु हो जाय तब तो लगता है उनकी लॉटरी लग गयी। आपके घर में आपके बच्चे और बूढ़े दूध के लिए बिलखते रहे हों पर अब गौ चाहिए।आपके घर में बेसक टूटी खाट न हो पर अब पलंग चाहिए। आपके बच्चे और बुजुर्ग को ठण्ड से बचने के लिए वस्त्र कम्बल आदि न हो पर अब रजाई कम्बल तकिया चाहिए। आपको वो सारी व्यवस्थाएँ करनी पड़ेंगी।चाहे इसके लिए आपको अपना जमीन बेचना पड़े या घर गिरवी रखना पड़े। अगर आप नहीं करते तो आपको ऐसे ऎसे भय दिखाते हैं कि आप मजबूर होकर डर से भयभीत होकर उनके लिए सारी चीजें लाते हैं। आपके पूर्वजों के नाम पर वो सारी चीजें उन ढोंगी पण्डे पुजारियों के घर की शोभा बढ़ाते हैं।
अगर आप विचारवान् है तो आपके लिए इतना ही पर्याप्त हैं। वरना चारों वेद और छहो शास्त्र हमारा भला नही कर सकते। मनुस्मृति में कहा गया हैं "आचारहीनं न पुनन्ति वेदाः"
अतः खुद जगिये और औरों को भी जगाइए।वरना वो हमे लूटते रहेंगे और हम लुटते रहेंगे। जब जागो तभी सवेरा
"भष्मान्तम् शरीरं " (यजुर्वेद 40वां अध्याय)
मृत्योपरांत मृतक के शरीर को जलाने के बाद उसके कोई कर्म शेष नहीं रह जाते।
आइए हम श्राद्ध तर्पण और पिंडदान के बारे में संक्षेप में जानकारी प्राप्त करें
1. श्राद्ध-जब हम अपने जीवित पूर्वजों को श्रद्धा पूर्वक उनके लिए ऋतु अनुकूल भोजन, वस्त्र, पेय, मनोरंजन आदि देते हैं तब वह श्राद्ध कहलाता है।
2.तर्पण- जब हमारे द्वारा श्रद्धा पूर्वक दिए गए भोजनादि से हमारे बड़े बुजुर्ग तृप्त हो जाते हैं तब वही तर्पण कहलाता है।
3.पिंडदान- इस शरीर को पिंड भी कहते हैं और जब यह शरीर मृत्यु को प्राप्त होता है तब उसे जलाने के लिए चिता पर अच्छी प्रकार से रखकर जलाना ही पिंडदान कहलाता है।
ये बाते पूर्णतया वैदिक हैं। जहाँ तक पुराणों की बात हैं वो प्रमाणिक नहीं मने जाते क्योकिं 18 पुराणों के विषय एवम् कथानक अपने आप में नहीं मिलते हर पुराण एक दूसरे की काट करता है।
मृत्योपरांत श्राद्ध तर्पण आदि से हमारे मृतक पूर्वजों को कुछ लाभ नहीं मिलता बल्कि हमारे पाखण्डी पण्डे पूजारियों को लाभ जरूर पहुँचता है। ये पण्डे पुजारी अपने आपको हमारा पुरोहित कहते हैं। जरा विचार कीजिए पुरोहित शब्द पर पुरः+हित अर्थात् जो हमारा सब ओर से हित चाहे वो पुरोहित है। परन्तु आप देखिए जब हमारे यहाँ किसी की मृत्यु हो जाय तब तो लगता है उनकी लॉटरी लग गयी। आपके घर में आपके बच्चे और बूढ़े दूध के लिए बिलखते रहे हों पर अब गौ चाहिए।आपके घर में बेसक टूटी खाट न हो पर अब पलंग चाहिए। आपके बच्चे और बुजुर्ग को ठण्ड से बचने के लिए वस्त्र कम्बल आदि न हो पर अब रजाई कम्बल तकिया चाहिए। आपको वो सारी व्यवस्थाएँ करनी पड़ेंगी।चाहे इसके लिए आपको अपना जमीन बेचना पड़े या घर गिरवी रखना पड़े। अगर आप नहीं करते तो आपको ऐसे ऎसे भय दिखाते हैं कि आप मजबूर होकर डर से भयभीत होकर उनके लिए सारी चीजें लाते हैं। आपके पूर्वजों के नाम पर वो सारी चीजें उन ढोंगी पण्डे पुजारियों के घर की शोभा बढ़ाते हैं।
अगर आप विचारवान् है तो आपके लिए इतना ही पर्याप्त हैं। वरना चारों वेद और छहो शास्त्र हमारा भला नही कर सकते। मनुस्मृति में कहा गया हैं "आचारहीनं न पुनन्ति वेदाः"
अतः खुद जगिये और औरों को भी जगाइए।वरना वो हमे लूटते रहेंगे और हम लुटते रहेंगे। जब जागो तभी सवेरा
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